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सरदार पटेल का चित्र

जीवनी

प्रारम्भिक जीवन

गुजरात के नाडियाद गाँव में ३१ अक्टूबर १८७५ को पैदा हुए वल्लभभाई पटेल छह बच्चों के परिवार में चौथे थे। अपनी माँ लाडबा की देखभाल में करमसाद में बड़े होते हुए वे अक्सर अपने पिता झवेरभाई, जो कि एक किसान थे, की जमीन जोतने में मदद किया करते थे। कहा जाता है कि उनके पिताजी १८५७ के विद्रोह में झांसी की रानी की सेना में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे। जब तक वल्लभभाई का जन्म हुआ तब तक झवेरभाई अपने हिस्से की दस एकड़ पैतृक भूमि में हल चलाने वाले किसान के जीवन में बस गए थे। वल्लभभाई की माँ लाडबा को सुंदर आवाज़ वाली एक बहुत ही सक्षम महिला कहा जाता था। वे हर शाम को भक्ति गीत गाने के लिए और महाकाव्यों से कहानियाँ सुनाने के लिए बच्चों को आँगन में एक साथ इकट्ठा किया करती थीं।

सफ़ल वक़ील

१८९७ में २२ साल की उम्र में अपनी मैट्रीक की परीक्षा पास करके पटेल आगे की पढ़ाई के लिए बम्बई जाने की इच्छा रखते थे। फिर भी उन्होंने अपने परिवार की जिम्मेदारियों का भार उठाने  के लिए, एक स्थानीय वकील के ऑफ़िस में नौकरी लेने का निर्णय लिया जहाँ पर उनकी क़ानून की किताबों तक पहुँच थी। 

१९००  में गोधरा शहर में जाकर पटेल ने वहाँ अपना क़ानूनी व्यवसाय शुरू किया। जैसे ही वे अपना घर बसाना शुरू कर रहे थे, प्लेग ने गुजरात के बहुत बड़े क्षेत्र का सफ़ाया कर दिया था और अपने एक दोस्त की सेवा करते हुए ख़ुद पटेल को यह बीमारी लग गई।  इन बाधाओं पर क़ाबू पाते हुए तथा गोधरा को छोड़ते हुए, उन्होंने बोरसद में जहाँ उनके भाई विट्ठलभाई रहते थे, अपना व्यवसाय शुरू किया।  वहाँ, वे तेज़ी से सफलता की सीढ़ी चढ़ गए और शीघ्र ही सबसे अधिक माँग वाले आपराधिक वकीलों में से एक बन गए।

क्रांतिकारी परिवर्तन

१९४२ में गांधी ने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने पर मजबूर करने के लिए 'भारत छोड़ो आंदोलन' चहुंमुखी सविनय अवज्ञा अभियान के रूप में शुरू किया था। हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेता शुरू में इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे, परन्तु सरदार पटेल का मानना था कि एक चहुंमुखी विद्रोह भारत के लोगों को प्रेरित करेगा और अंग्रेज़ों को यह स्वीकार करने पर मजबूर करेगा कि औपनिवेशिक शासन की निरंतरता को भारत में अब कोई समर्थन नहीं मिलने वाला।

गांधी के आग्रह पर, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने ७ अगस्त १९४२ को इस अभियान को मंजूरी दी थी। पटेल, हालांकि उस समय बुरे स्वास्थ्य से पीड़ित थे, ने जनता से करों का भुगतान न करने और नागरिक अवज्ञा में भाग लेने का अनुरोध किया। बॉम्बे में ग्वालिया टैंक पर एकत्रित १००,००० लोगों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए, पटेल ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और प्रशासनिक सेवाओं को बंद करने का अनुरोध किया था। प्रतिवाद में उनकी भूमिका के कारण ९ अगस्त १९४२ को पटेल को गिरफ्तार किया गया और पूरी कांग्रेस समिति के साथ अहमदनगर किले में १९४२ से १९४५ तक बंदी बनाकर रखा गया था।

वल्लभभाई सरदार बनते हैं

पटेल ने सूट और टोपी पहने हुए अंग्रेज़ी बोलने वाले अमीर वकील के अपने व्यक्तित्व को छोड़ा, और गांधी के नक्शेकदम पर खादी को अपनाया। १९१८ में इस परिवर्तन के तुरंत बाद, खेड़ा में किसानों के अभियान के साथ पटेल ने सार्वजनिक सेवा के जीवन की शुरुआत की। अंग्रेज़ी प्रशासन ने असफल फसल के बावजूद क्षेत्र में कर के भुगतान को स्थगित करने के लिए किसानों की याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।गांधी को संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए कहा गया था और उन्होंने अभियान के लिए पटेल को अपने सहायक कमाण्डर के रूप में चुना। नरहरी पारिख, मोहनलाल पंड्या और अब्बास तैयबजी जैसे अपने साथियों के साथ जुड़कर वल्लभभाई पटेल ने एक राज्यव्यापी विद्रोह करने के लिए ग्रामीणों को एकत्रित करके उनसे करों का भुगतान ना करने का आग्रह किया। प्रशासन द्वारा किसानों की मांगें पूरी किये जाने के साथ खेड़ा अभियान ने बड़ी सफलता मिली। खेड़ा के किसानों की आँखों में पटेल तुरंत ही नायक बन गए।

स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह

१९४२ में गांधी ने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने पर मजबूर करने के लिए 'भारत छोड़ो आंदोलन' चहुंमुखी सविनय अवज्ञा अभियान के रूप में शुरू किया था। हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेता शुरू में इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे, परन्तु सरदार पटेल का मानना था कि एक चहुंमुखी विद्रोह भारत के लोगों को प्रेरित करेगा और अंग्रेज़ों को यह स्वीकार करने पर मजबूर करेगा कि औपनिवेशिक शासन की निरंतरता को भारत में अब कोई समर्थन नहीं मिलने वाला।

गांधी के आग्रह पर, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने ७ अगस्त १९४२ को इस अभियान को मंजूरी दी थी। पटेल, हालांकि उस समय बुरे स्वास्थ्य से पीड़ित थे, ने जनता से करों का भुगतान न करने और नागरिक अवज्ञा में भाग लेने का अनुरोध किया। बॉम्बे में ग्वालिया टैंक पर एकत्रित १००,००० लोगों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए, पटेल ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और प्रशासनिक सेवाओं को बंद करने का अनुरोध किया था। प्रतिवाद में उनकी भूमिका के कारण ९ अगस्त १९४२ को पटेल को गिरफ्तार किया गया, और पूरी कांग्रेस समिति के साथ अहमदनगर किले में १९४२ से १९४५ तक बंदी बनाकर रखा गया था।

स्वतंत्रता का सपना साकार होना

1947 के प्रारंभ में, ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्लेमेंट ऐटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन भारत से वापस चला जाएगा। यह एक ऐतिहासिक क्षण था। फरवरी 1947 में हाउस ऑफ कॉमन्स में दिए गए एक बयान में, ऐटली ने कहा कि उनकी महामहिम सरकार ने जून 1948 तक जिम्मेदार भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरित करने की इच्छा कर रही थी। लॉर्ड वॉवेल की जगह लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति भी नए वाइसरॉय के रूप में की गई थी। जून 1947 में एक बयान में लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता के हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से अगस्त 1947 तक आगे कर दी।

पटेल और कई अन्य लोग जिन्होंने आजादी का क्षण देखने के लिए परिश्रम किया था, उनके लिए  स्वतंत्रता का मीठा सपना आखिरकार पहुँच के भीतर था। लेकिन उनके श्रम के फल भारी कीमत पर आ रहे थे।भारत का दो राष्ट्रों में विभाजन और अधिक अपरिहार्य लग रहा था और हालांकि पटेल ने शुरू में पाकिस्तान के जिन्ना के विचार को 'पागलपन के सपने' के रूप में खारिज कर दिया था, उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें कड़वी गोली निगलनी पड़ेगी।

एकता: उनकी महान विरासत

जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की गर्दन में अपने दाँत गड़ा दिये थे, तब उन्होंने भारतीय राज्यों के नवाबों और राजाओं को सामरिक सहयोगियों के रूप में देखा। कंपनी ने इन राज्यों के शासकों को ऐसी संधियों के लिए मजबूर किया जिसके द्वारा कंपनी को सर्वोच्च शक्ति के रूप में मान्यता दे दी गई। अगस्त १९४७ में अंग्रेजों की वापसी के साथ, यह सर्वोपरिता समाप्त हो जाती और भारतीय राज्यों के ये  शासक एक बार फिर मुक्त हो जाते। भारत के समपूर्ण क्षेत्र के लगभग दो बटे पाँच भाग में शाही राज्य शामिल थे। हैदराबाद और कश्मीर जैसे कुछ राज्य तो कई यूरोपीय देशों से बड़े थे। अन्य कुछ छोटे-छोटे कस्बे या जगीर थे जिनमें बस थोड़े-बहुत गांव थे। कुल मिला कर, ५६५ ऐसे राज्य थे जिन्हें १५ अगस्त, १९४७  की मध्यरात्रि के बाद भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के लिए छूट दी गई थी।

गोधूलि वर्ष

स्वतंत्रता के समय, पटेल 72 थे। शाही रियासतों को जोड़ने और उनके एकीकरण का कार्यभार संभालने से पहले, उनका स्वास्थ्य बिगड़ना शुरू हो गया था और उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी गई थी। फिर भी, स्वतंत्र भारत की पहली कैबिनेट के सदस्य के रूप में, उन्होंने तत्काल तीन मंत्रालयों - गृह, राज्य और सूचना का प्रभार संभाला।इसके अतिरिक्त, वह भारत के उप प्रधान मंत्री भी थे। इस अवधि के दौरान, जब भी नेहरू विदेश यात्रा करते थे, पटेल ने कार्यवाहक प्रधान मंत्री होने की जिम्मेदारी भी सँभाली। जब राज्य विभाग के सचिव, वी.पी. मेनन ने आज़ादी के समय पटेल को बताया कि स्वतंत्रता का सपना हासिल करने के बाद वे शायद सेवा -निवृत्त होना पसंद करते, पटेल ने उनसे कहा कि यह कोई विश्राम करने या सेवा -निवृत्त होने का समय नहीं है क्योंकि युवा राष्ट्र को उनकी सेवाओं की जरूरत है। पटेल ने भी एक मजबूत स्वतंत्र भारत के निर्माण की चुनौती का सामना करने के लिए बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ्य की चिंताओं को एक किनारे कर दिया।

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आज भारत के सामने पहला मुख्य कार्य है खुद को सुगठित और संयुक्त शक्ति में मजबूत करना...

युवा पुरुषों और महिलाओं को एक मजबूत चरित्र बनाना है। देश की महानता लोगों के चरित्र में परिलक्षित होती थी। यदि यह स्वार्थपरता के कारण दूषित हो गई हो, तो ऐसे लोग सफल नहीं हो सके या बड़ी चीज़ें हासिल नहीं कर सके। स्वार्थपरता की जीवन में अपनी जगह थी क्योंकि हर किसी को अपनी और अपने परिवार की जरूरतों को देखना पड़ता था, पर इसे जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग नहीं बनाया जा सकता था।

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जब तक तुम ये नहीं जानते कि मरते कैसे हैं, ये जानना बेकार है कि मारते कैसे हैं। पाशविक शक्ति से भारत को लाभ नहीं होगा। अगर भारत को लाभ होगा तो यह अहिंसा के माध्यम से होगा।

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