महात्मा गांधी के साथ सरदार पटेल

१९४२ में गांधी ने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने पर मजबूर करने के लिए 'भारत छोड़ो आंदोलन' चहुंमुखी सविनय अवज्ञा अभियान के रूप में शुरू किया था। हालांकि, कांग्रेस के कुछ नेता शुरू में इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे, परन्तु सरदार पटेल का मानना था कि एक चहुंमुखी विद्रोह भारत के लोगों को प्रेरित करेगा और अंग्रेज़ों को यह स्वीकार करने पर मजबूर करेगा कि औपनिवेशिक शासन की निरंतरता को भारत में अब कोई समर्थन नहीं मिलने वाला।

गांधी के आग्रह पर, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने ७ अगस्त १९४२ को इस अभियान को मंजूरी दी थी। पटेल, हालांकि उस समय बुरे स्वास्थ्य से पीड़ित थे, ने जनता से करों का भुगतान न करने और नागरिक अवज्ञा में भाग लेने का अनुरोध किया। बॉम्बे में ग्वालिया टैंक पर एकत्रित १००,००० लोगों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए, पटेल ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों और प्रशासनिक सेवाओं को बंद करने का अनुरोध किया था। प्रतिवाद में उनकी भूमिका के कारण ९ अगस्त १९४२ को पटेल को गिरफ्तार किया गया और पूरी कांग्रेस समिति के साथ अहमदनगर किले में १९४२ से १९४५ तक बंदी बनाकर रखा गया था।

१८५७ के विद्रोह के बाद से 'भारत छोड़ो आंदोलन' अंग्रेज़ों के खिलाफ सबसे गंभीर विद्रोह सिद्ध हुआ। इस आन्दोलन का प्रभाव कुछ ऐसा था कि जब सन १९४५ में सरदार की रिहाई हुई तो अंग्रेज़ों ने सत्ता को कांग्रेस को हस्तांतरित करने के और भारत छोड़ने के प्रस्ताव तैयार करने प्रारंभ कर दिए थे।  

एक दीर्घ अभिलाषित स्वप्न अंततः पूरा होता दिखाई पड़ रहा था।