जेल से बाहर आते ही, १९३१ में, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कराची अधिवेशन में, पटेल अध्यक्ष चुने गए।

'मैं होश में हूँ' उन्होंने अधिवेशन के अपने भाषण की श्रृंखला में कहा, 'कि देश के पहले सेवक के रूप में आपका मेरा चुनाव, मैंने जो थोड़ा बहुत किया होगा उसके लिए उतना अधिक नहीं है जितना कि पिछले साल गुजरात ने जो अद्भुत बलिदान दिया है उसके सम्मान में है।'

अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल उस समय में आया जब राष्ट्र भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के फाँसी से गुस्से में था, तीन देशभक्त जिन्हें लाहौर में एक पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित करते हुए कांग्रेस ने राजनीतिक हिंसा एवं किसी भी आकार और रूप में दबाव से जुड़े न रहने के अपने रुख़ को बनाए रखने की कामना की। जिसके लिए, कराची सम्मेलन में 'भगत सिंह जिंदाबाद!' के नारे के साथ गाँधी और अन्य नेताओं हो-हल्ला मचाकर बोलने से रोका।
इस हंगामे के बीच में, सत्र के अध्यक्ष के रूप में पटेल सभा को संबोधित करने के लिए उठे। जैसी उनकी

सामान्य शैली थी, उन्होंने बिना किसी बनावटी शब्दों के पर सभी संबद्ध मुद्दों पर चर्चा करते हुए बोला। 'मैं यहांँ एकत्रित युवकों की भावनाओं से पूर्ण रूप से सहानुभूति रखता हूँ।

उन्हें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की निर्दय फाँसी पर अपना आक्रोश व्यक्त करने का अधिकार है जिसने देश को गहरे द्वेष से भर दिया है। मैं शायद उनके तरीकों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सक्षम न होऊँ; फिर भी इन लोगों की देशभक्ति, बलिदान और साहस मेरी असीम प्रशंसा के योग्य है।'

उनके भाषण का वांछित प्रभाव था और कांग्रेस प्रस्ताव को पारित किए जाने की अनुमति मिल गई थी।
अपने जीवन भर, सरदार सीधे अपने दिल से बात करने के लिए जाने जाते थे। उनके भाषण कभी लंबे
नहीं होते थे लेकिन उनमें ऐसे शब्द समाहित होते थे जो लोगों को काम करने के लिए उत्तेजित करते थे।

यह तस्वीर सरदार पटेल को कांग्रेस के अधिवेशन में आचार्य कृपलानी, शंकरराव देव और कामकादेवी चट्टोपाध्याय के साथ दर्शाता है।

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19YY-NAI-SP-154
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India
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Indian National Congress

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